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योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जो शरीर, मन और आत्मा को व्यायाम के जरिये एकजुट करने का काम करता है। योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘युज’ से हुई है, जिसका अर्थ होता है “एकजुट करना या एकीकृत ऐसा माध्यम है जो हमें पहले अपने आप से जोडता है फिर समाधि को प्राप्त करने में मदद करता है। यह जीवन को अनुशासित एंव मर्यादित रूप से जीने का मार्ग भी दिखाता है। गीता में भी श्रीकृष्ण ने कहा है कि योग: कर्मसु कौशलम यानी योग से कर्मों में कुशलता आती है। योग का इतिहास बहुत पुराना है एसा माना जाता है की इसकी शुरुआत उस समय से है जब मनुष्य की उत्पत्ति हुई थी। इसका वर्णन वेद और उपनिषद में भी मिलता है, परन्तु ऐसा माना जाता है कि योग को व्यवस्थित रूप से लिपिबद्ध करने में महर्षि पतंजलि और घेरण्ड मुनि का बहुत बडा योगदान है। आधुनिक काल में स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो के धर्म संसद में भी अपने ऐतिहासिक भाषण में योग का उल्लेख कर सारे विश्व को योग से परिचित कराया था। इसके अलावा बहुत सारे योग गुरुओं नें इसे दुनिया में पहुचाने का काम किया। 11 दिसम्बर 2014 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करना”। योग का दुसरा अर्थ होता है समाधि, यानी योग एक ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था जिसे 193 देशों में से 175 देशों ने बिना किसी मतदान के स्वीकार कर लिया। यूएन ने योग की महत्ता को स्वीकारते हुए यह माना कि ‘योग मानव स्वास्थ्य और कल्याण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, तब से पुरे विश्व में 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है। यद्यपि योगा का जिक्र हिन्दु धार्मिक ग्रंथों में की गयी है पर यह पुर्णरूप से एक धर्मनिरपेक्ष व्यायाम की प्रक्रिया है जो शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखता है। योग बौद्ध धर्म का केंद्र है तथा बुद्ध के प्रारंभिक उपदेशों में योग की चर्चा है। जैन ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र, के अनुसार मन, वाणी और शरीर सभी गतिविधियों का कुल 'योग' है। सूफी संगीत के विकास में भारतीय योग अभ्यास का काफी प्रभाव है, जिसमें आसन और प्राणायाम दोनों को सम्मिलित किया गया है। 11वीं शताब्दी की शुरुआत में, फ़ारसी विद्वान अल बिरूनी ने भारत का दौरा किया तथा 16 साल तक हिंदुओं के साथ रहे, और उनकी मदद से कई महत्वपूर्ण संस्कृत कार्यों का अरबी और फ़ारसी भाषाओं में अनुवाद किया। इन्हीं में से एक था पतंजलि का योगसूत्र। ऐसा देखा गया है की कई ईसाई धर्म मानने वाले लोग अपने प्रार्थना और ध्यान के साथ योग को भी सम्मिलित किये हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि योग को हर समुदाय के लोगों ने अपने-अपने तरीके से अपनाया है। योग के प्रकार: हालांकि, योग के कई प्रकार हैं पर आमतौर पर इसे 6 भागों में बांटा गया है:
1. राज योग: योग की सबसे अंतिम अवस्था समाधि को राजयोग कहा जाता है। इसे सभी योगों का राजा माना जाता है, क्योंकि इसमें सभी प्रकार के योगों की कोई न कोई खासियत जरूर है। इसमें रोजमर्रा की जिंदगी से कुछ समय निकालकर आत्म-निरीक्षण किया जाता है। यह ऐसी साधना है, जिसे हर कोई कर सकता है। महर्षि पतंजलि ने इसका नाम अष्टांग योग रखा है और योग सूत्र में इसका विस्तार से उल्लेख किया है। उन्होंने इसके आठ प्रकार बताए हैं, जो इस प्रकार हैं :
• यम (शपथ लेना)
• नियम (आत्म अनुशासन)
• आसन (मुद्रा)
• ध्यान (मेडिटेशन)
• प्रत्याहार (इंद्रियों का नियंत्रण)
• धारणा (एकाग्रता)
• प्राणायाम (श्वास नियंत्रण)
• समाधि (बंधनों से मुक्ति या परमात्मा से मिलन)
2. ज्ञान योग : ज्ञान योग को बुद्धि का मार्ग माना गया है। यह ज्ञान और स्वयं से परिचय करने का जरिया है। इसके जरिए मन के अंधकार यानी अज्ञान को दूर किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि आत्मा की शुद्धि ज्ञान योग से ही होती है। चिंतन करते हुए शुद्ध स्वरूप को प्राप्त कर लेना ही ज्ञान योग कहलाता है। ज्ञान योग को सबसे कठिन माना गया है। अंत में इतना ही कहा जा सकता है कि स्वयं में लुप्त अपार संभावनाओं की खोज कर ब्रह्म में लीन हो जाना ज्ञान योग कहलाता है।
International Yoga Day 21/6/21
योग एक जीवन पद्धति
3. कर्म योग: कर्म योग को हम इस श्लोक के माध्यम से समझते हैं। योगा कर्मो किशलयाम यानी कर्म में लीन होना। श्रीकृष्ण ने भी गीता में कहा है ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ यानी कुशलतापूर्वक काम करना ही योग है। कर्म योग का सिद्धांत है कि हम वर्तमान में जो कुछ भी अनुभव करते हैं, वो हमारे पूर्व कर्मों पर आधारित होता है। कर्म योग के जरिए मनुष्य किसी मोह-माया में फंसे बिना सांसारिक कार्य करता जाता है और अंत में परमेश्वर में लीन हो जाता है।
4. भक्ति योग : ईश्वर, सृष्टि, प्राणियों, पशु-पक्षियों आदि के प्रति प्रेम, समर्पण भाव और निष्ठा को ही भक्ति योग माना गया है। भक्ति योग किसी भी उम्र, धर्म, राष्ट्र, निर्धन व अमीर व्यक्ति कर सकता है। हर कोई किसी न किसी को अपना ईश्वर मानकर उसकी पूजा करता है, बस उसी पूजा को भक्ति योग कहा गया है।
5. हठ योग : यह प्राचीन भारतीय साधना पद्धति है। हठ में ह का अर्थ हकार यानी दाँई नासिका स्वर, जिसे पिंगला नाड़ी करते हैं। वहीं, ठ का अर्थ ठकार यानी बाईं नासिका स्वर, जिसे इड़ा नाड़ी कहते हैं, जबकि योग दोनों को जोड़ने का काम करता है। हठ योग के जरिए इन दोनों नाड़ियों के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनि हठ योग किया करते थे। इसे करने से आप शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकते हैं और मानसिक रूप से शांति मिलती है।
6. कुंडलिनी/लय योग: योग के अनुसार मानव शरीर में सात चक्र होते हैं। जब ध्यान के माध्यम से कुंडलिनी को जागृत किया जाता है, तो शक्ति जागृत होकर मस्तिष्क की ओर जाती है। इस दौरान वह सभी सातों चक्रों को क्रियाशील करती है। इस प्रक्रिया को ही कुंडलिनी/लय योग कहा जाता है। इसमें मनुष्य बाहर के बंधनों से मुक्त होकर भीतर पैदा होने वाले शब्दों को सुनने का प्रयास करता है, जिसे नाद कहा जाता है। इस प्रकार के अभ्यास से मन की चंचलता खत्म होती है और एकाग्रता बढ़ती है।
योग करने का सही समय: योग विज्ञान में दिन को चार हिस्सों में बांटा गया है, ब्रह्म मुहूर्त, सूर्योदय, दोपहर व सूर्यास्त। इनमें से ब्रह्म मुहूर्त और सूर्योदय को योग के लिए सबसे बेहतर माना गया है। • ऐसा माना जाता है कि अगर आप ब्रह्म मुहूर्त में उठकर योग करते हैं, तो सबसे ज्यादा फायदा होता है। उस समय वातावरण शुद्ध होता है और ताजी हवा चल रही होती है। अमूमन आध्यात्म ज्ञान प्राप्त करने वाले भी इसी समय योगाभ्यास करते हैं। • ब्रह्म मुहूर्त का समय सुबह चार बजे का माना गया है। इस समय सभी के उठना संभव नहीं है, इसलिए अगर आप सूर्योदय के समय भी योग करते हैं, तो बेहतर है। इससे शरीर दिनभर ऊर्जावान रहता है। • ध्यान रहे कि योगासन हमेशा खाली पेट ही करें। • आप सूर्यास्त के बाद भी योग कर सकते हैं, लेकिन उससे तीन-चार घंटे पहले तक आपने कुछ न खाया हो। आमतौर पर योगा को विभिन्न प्रकार के आसन, प्रणायाम, मुद्रा एवं सुर्य नमस्कार के रूप में अभ्यास किया जाता है जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं जिनका अभ्यास स्वस्थ रहने के लिये नियमित रूप से किया जा सकता है, परन्तु किसी भी बिमारी में योगासन का चयन विशेषज्ञों की मदद से करें।
Awareness on Black Fungus (3 June 2021)
ब्लैक फंगस का भारत में प्रकोप
म्यूकरमाइकोसिस या ब्लैक फंगस एक गंभीर संक्रमित बीमारी है, जो आमतौर पर कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों में होता है। म्यूकरमाइकोसिस का पहला मामला संभवतः 1855 में फ्रेडरिक कुचेनमिस्टर द्वारा वर्णित किया गया था। मनुष्यों में यह फंगस पहली बार 1885 में एक जर्मन वैज्ञानिक पल्टाफ द्वारा रिपोर्ट किया गया जिसने उसका नाम म्यूकरमाइकोसिस रखा। 1943 में पहली बार इस बीमारी का संबंध डायबिटीज़ के साथ जोड़ा गया था। यह बीमारी भारत में 2004 के सुनामी और अमेरिका में 2011 के मिसौरी टोरनाडो में होनेवाले प्राकृतिक आपदा के समय बहुतायत की संख्या में देखा गया था। हालाँकि ब्लैक फ़ंगस एक दुर्लभ बीमारी है, जो हर साल प्रति 10 लाख जनसंख्या में 2 से भी कम लोगों को प्रभावित करता है पर भारत में यह दुसरे देशों के तुलना में लगभग 80 गुना ज्यादा है। यह बीमारी म्यूकर मोल्ड के संपर्क में आने के कारण होता है जो आमतौर पर मिट्टी, पौधों, खाद और सडे हुए फलों और सब्जियों में पाया जाता है। यह मिट्टी और हवा में तथा स्वस्थ लोगों की नाक और बलगम में भी पाया जाता है लेकिन आम तौर पर यह लोगों को संक्रमित नहीं करता तथा यह दुसरे संक्रामक बीमारी की तरह लोगों के बीच संचरित भी नहीं होता है। ब्लैक फ़ंगस की बीमारी उन लोगों में ज़्यादा हो सकती है जिन्हें अनियंत्रित मधुमेह, कैंसर, किडनी फेलियर, आयरन ओवरलोड तथा एड्स जैसी गंभीर बीमारी हो। इसके अलावा वैसे लोग जिनमें संक्रमण से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता कम हो तथा लम्बे समय से स्टीरॉयड एवं ईम्युनोसप्रेसिव थेरेपी ले रहे हों उनमें यह बीमारी होने की संभावना ज़्यादा होती है। कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स आमतौर पर कोविड -19 के उपचार में उपयोग किए जाते हैं जो कोरोना उपचार में किसी रामबाण से कम नहीं पर दुर्भाग्यवश यह दवा मरीज़ के रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर कर देता हैं तथा मधुमेह और गैर-मधुमेह रोगियों में ब्लड शुगर के स्तर को बढ़ा देता है। ऐसा माना जाता है कि कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स दोनों ब्लैक फ़ंगस के मामलों को बढ़ाने का काम करते हैं। भारत में ब्लैक फ़ंगस के ज्ञात मरीजों की संख्या 9 हज़ार के क़रीब है और इसकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। भारत में ब्लैक फ़ंगस के मरीजों की संख्या के अधिक होने का सबसे बड़ा कारण मधुमेह है, यहाँ हर 6 लोगों में 1 मधुमेह के शिकार हैं। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मधुमेह से पीड़ित लोगों का देश है। भारत में ब्लैक फ़ंगस का दुसरा सबसे बड़ा कारण है कोरोना के इलाज में कोर्टीकोस्टिरॉयड का अत्यधिक उपयोग। कोरोना के मामले में भी भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्रभावित देश है। हाल ही में चार भारतीय डॉक्टरों द्वारा एक अध्ययन किया गया जिसमें कोविड -19 रोगियों के 100 से अधिक मामलों को देखा गया, जो ब्लैक फ़ंगस से भी ग्रसित थे और यह पाया गया कि उनमें से 83 मधुमेह से पीड़ित थे। मुंबई के दो अस्पतालों में ब्लैक फ़ंगस के 45 रोगियों के एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि सभी मधुमेह के रोगी थे तथा यह भी देखा गया कि उन सभी में ब्लड शुगर का स्तर बहुत अधिक था। इस अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है की मधुमेह, ब्लैक फ़ंगस को बढ़ाने में मदद करता है, पर एक सच्चाई यह भी है की मधुमेह इसके लिए सीधे तौर पर ज़िम्मेदार नहीं होता। खून में चीनी की मात्रा अधिक होने से फ़ंगस का विकास नहीं हो सकता बल्कि अनियंत्रित मधुमेह वाले लोगों के खून में अक्सर न्यूट्रोफिल डीसफ्ंग्सनल हो जाता है यानी उन मरीज़ों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है तथा खून में आयरन का स्तर भी बढ़ जाता है, जो ब्लैक फ़ंगस के ग्रोथ के लिये एक अनुकूल वातावरण प्रदान करता है। अतः यह कहा जा सकता है शरीर में ब्लैक फ़ंगस के ग्रोथ को रोकने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाना होगा तथा डायबिटीज़ को भी नियंत्रित रखना होगा। इसके साथ ही कोरोना के इलाज में कोर्टीकोस्टिरॉयड का उपयोग ज़रूरत के मुताबिक़ डॉक्टर के परामर्श के बाद हीं करना चाहिए। वैसे कोरोना के मरीज़ जिनमें डायबिटीज़ नियंत्रण में नहीं होता है तथा साँस लेने में तकलीफ़ होती है वैसे मरीज़ों को कोर्टीकोस्टिरॉयड दिया जाता है उस परिस्थिति में ब्लैक फ़ंगस के ख़तरे से बचने के लिए डॉक्टर की सलाह पर एंटीफंगल दवा एक बढीया विकल्प है। ब्लैक फ़ंगस के बहुत सारे प्रकार हैं तथा इसके लक्षण शरीर के संक्रमित भाग पर निर्भर करता है। आमतौर पर यह साइनस और मस्तिष्क को संक्रमित करता है जिसके परिणामस्वरूप बहती नाक, नाक में कन्जेशन, एक तरफ के चेहरे का लाल होना, सूजन होना, साइनस में दर्द, सिरदर्द, बुखार, कम दिखाई देना तथा कभी कभी गंभीर परिस्थिति में मरीज अपनी आँखों को भी खो देता है। रोग के अन्य रूप फेफड़े, पेट, आंत और त्वचा को संक्रमित कर सकते हैं। श्वसन संबंधी लक्षण में खांसी, बुख़ार, सरदर्द, छाती में दर्द, सांस लेने में कठिनाई इत्यादि होता है, त्वचा से संबंधित लक्षण, जो शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकते हैं और फैल सकते हैं जैसे काला त्वचा, सूजन, फफोले, अल्सर इत्यादि। अगर इसका इलाज समय पर न किया गया तो ब्लैक फ़ंगस घातक हो सकता है और मृत्यु का कारण बन सकता है। ब्लैक फ़ंगस के इलाज से पहले उसका डायग्नॉसिस ज़रूरी है जिसके लिए डॉक्टर की निगरानी में ब्लड टेस्ट, युरीन टेस्ट तथा फ़ंगल कल्चर, फेफड़ों एवं साइनस की सीटी स्कैन इत्यादि किया जाता है। इसके अलावा जैसा की हम जानते हैं की ब्लैक फ़ंगस में ब्लड में न्युट्रोफिल्स की संख्या कम हो जाती है, ब्लड सुगर बढ़ा रहता है तथा ब्लड में आयरन की संख्या भी बढ़ जाती है इसलिए ब्लड टेस्ट में विशेष रूप से न्युट्रोफिल्स की संख्या, ब्लड में आयरन की संख्या एवं ब्लड सुगर की जाँच बीमारी की पुष्टि करने में सहायक होते है। उपचार: संक्रमण के बाद ब्लैक फ़ंगस स्थिर नहीं रहता है, बल्कि नाक से आंखों पर हमला करता है, और अंत में मस्तिष्क तक पहुंच जाता है जहां पहुँचने के बाद यह संभावित रूप से घातक हो जाता है। शुरुआत में एम्फोटेरीसीन नाम की एन्टीफंगल दवा इसको ठीक करने में कारगर होती है पर चुकी यह शरीर के कई अंगों को प्रभावित करता है इसलिए गंभीर परिस्थिति में इसके इलाज के लिए भी बहुत सारे स्पेशलिस्ट डॉक्टर की ज़रूरत पड़ सकती है। गंभीर परिस्थिति में मरीज को बचाने के क्रम में सर्जरी की भी ज़रूरत पड़ सकती है। सावधानीयाँ: धूल भरे क्षेत्रों में फेस मास्क पहनना, पानी से क्षतिग्रस्त इमारतों के सीधे संपर्क से बचना।, पैरों और हाथों के त्वचा को मिट्टी या खाद से बचा कर रखना। कोरोना इलाज में स्टिरॉयड का उपयोग डॉक्टर के सलाह पर करना। आम तौर पर कोरोना के मध्यम से गंभीर मामलों के इलाज में स्टिरॉयड का उपयोग होता है पर इसका उपयोग शुरू के 5 से 7 दिन तक नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि कोरोना के शुरूआत में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और उस परिस्थिति में अगर स्टिरॉयड दिया जाता है तब रोग प्रतिरोधक क्षमता और भी कमजोर हो सकती है जो कि ब्लैक फ़ंगस संक्रमण का कारण बन सकता है। स्टिरॉयड का उपयोग अत्यधिक 10-14 दिन तक ही किया जाना चाहिये। ज़रूरत पड़े तो डॉक्टर की सलाह पर स्टिरॉयड के साथ एन्टिफंगल भी लिया जा सकता है। इस तरह से ब्लैक फंगस के बढती हुई संख्या से निजात पाने के लिए लोगों में जागरूकता जरूरी है।
Education of Post Covid patient (Breathing Exercise) May 2021
कोरोना से स्वस्थ होने के बाद की समस्याऐं एवं उनका उपचार कोरोना
COVID-19 एक संक्रामक बीमारी है जिसमें आमतौर पर 80 प्रतिशत लोगों में बुख़ार, सर्दी, सुखी खांसी, गले में ख़राश, सीर में दर्द, शरीर में दर्द, थकान, स्वाद की कमजोर अनुभूति एवं शारीरिक कमजोरी इत्यादि के लक्षण देखे गये हैं। लगभग 15 प्रतिशत लोगों में यह बीमारी दोनों फेफड़ों को प्रभावित करता है जिससे फेफड़ों में पानी भर जाता है एवं साँस लेने में तकलीफ़ होने लगती है। लगभग 5 प्रतिशत लोगों में यह तकलीफ़ इतनी ज़्यादा हो जाती है की मरीजों को ऑक्सीजन एवं भेंटीलेटर की ज़रूरत पड़ सकती है। इन 5 प्रतिशत गंभीर रूप से बीमार मरीजों में से 20-30% मरीज ऐसे होते हैं जिनके फेफड़े, हृदय, मस्तिष्क और पैरों में खून के थक्के विकसित हो सकते हैं और वे निम्नलिखित गंभीर बीमारियों के कारण बन सकते हैं।
• एक्युट रेस्पाईरेटरी डीस्ट्रेस सिन्ड्रोम
•कार्डियोजेनिक सॉक
• हर्ट अटैक
• किडनी फेलियर
• न्युरोपैथी
• स्ट्रोक (लकवा)
• एक्युट लिवर इन्जुरी इत्यादि। अगर इन बीमारियों का इलाज समय रहते नही किया गया तो यह मरीज़ की मृत्यु का कारण बन सकता है। कोरोना संक्रमित ऐसे मरीज जिन्हें साँस लेने में तकलीफ़ होती है वैसे मरीजों के कोरोना नीगेटीव होने के बाद भी फेफड़ों में कमजोरी बनी रहती है। ऐसे परिस्थिति में ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ फेफड़ों को जल्दी स्वस्थ करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ से डायाफ्राम फ़ंक्शन को बहाल करने तथा फेफड़ों की क्षमता बढ़ाने में मदद मिलती है लेकिन COVID-19 जैसी श्वसन संबंधी बीमारी से उबरने के बाद, रिकवरी में जल्दबाजी न करना महत्वपूर्ण है इसलिए ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ को व्यक्तिगत क्षमता को ध्यान में रखकर के कई चरणों में विभाजित किया गया है।
1. पर्सड लिप ब्रीदिंग- पर्सड लिप ब्रीदिंग का अभ्यास करने के लिए, अपने मुंह को बंद रखते हुए, अपनी दोनों नाक से धीरे-धीरे सामान्य सांस लें और अपने होठों को सिकुडाकर सांस छोडें मानो आप सीटी बजाकर सांस बाहर निकाल रहे हैं, इसे 10 बार करें।
2. डायाफ्राग्मेटीक ब्रीदिंग- (डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज)
चरण 1: अपनी पीठ के बल लेटे हुए गहरी साँस लेना- अपनी पीठ के बल लेट जाएं और घुटनों को मोड़ें ताकि आपके पैरों के तलवे बिस्तर पर हों। अपने एक हाथ को पेट पर और दूसरे को सीना पर रखें। होंठ बंद करें और जीभ को अपने मुंह के उपर के तलवे पर चिपका कर रखें। नाक के माध्यम से साँस लें और पेट में हवा को नीचे खींचें जहां आपके हाथ हैं। अपनी सांसों के साथ-साथ उंगलियों को फैलाने की कोशिश करें। धीरे-धीरे अपनी सांस को नाक से बाहर निकालें। एक मिनट के लिए गहरी सांसों को दोहराएं।
चरण 2. पेंट के बल लेटे हुए गहरी साँस लेना- पेट के बल लेट जाएँ और अपने सिर को अपने हाथों पर आराम दें ताकि मुँह और नाक बिछावन से सटे नहीं। अपने होंठ बंद करें और जीभ को उपर के तलवे पर चिपका कर रखें। नाक के माध्यम से साँस लें और पेट में हवा नीचे खींचें। अपने पेट पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करें जैसे ही आप सांस लेते हैं तो बिस्तर को धक्का लगा रहे हैं। धीरे-धीरे अपनी नाक से सांस को बाहर निकालें। एक मिनट के लिए गहरी सांसों को दोहराएं।
चरण 3: बैठे हुए गहरी साँस लेना- बिस्तर के किनारे या कुर्सी पर सीधे बैठें। अपने एक हाथ को पेट पर और दूसरे को सीना पर रखें। होंठ बंद करें और जीभ को उपर के तलवे पर चिपका कर रखें। नाक के माध्यम से साँस लें और पेट में हवा को नीचे खींचें जहां आपके हाथ हैं। अपनी सांसों के साथ-साथ अपनी उंगलियों को फैलाने की कोशिश करें। धीरे-धीरे अपनी नाक से सांस को बाहर निकालें। एक मिनट के लिए गहरी सांसों को दोहराएं।
चरण 4: खड़े होकर गहरी साँस लेना- उपर दिए गये एक्सर्साइज को खड़े होकर करें।
2. थोरैसिक एक्सपैंशन एक्सरसाइज़ - यह अभ्यास गहरी श्वास के साथ गति को शामिल करता है जो बाहों और कंधों में ताकत बनाने में मदद करता है। यह आपकी छाती में मांसपेशियों को खोलता है ताकि डायाफ्राम को फैलने के लिए जगह मिल सके। अपने बिस्तर के किनारे या एक कुर्सी पर सीधे बैठें। अपनी दोनो बाहों को सीर से उपर उठाए और एक बड़ी स्ट्रेचिंग के साथ जम्हाई लें। अपनी बाहों को नीचे लाएँ और तीन सेकंड के लिए मुस्कुरा कर समाप्त करें। एक मिनट के लिए दोहराएं।
3. 4-7-8 श्वास तकनीक: कुर्सी पर सीघे बैठें होंठ बंद करें और जीभ को उपर के तलवे पर चिपका कर रखें 4 सेकेन्ड तक एक लम्बी सांस लें। 7 सेकेंड तक सांस को रोककर रखें। 8 सेकेंड तक पुरी ताकत से जैसे सीटी बजाते हैं सांस को बाहर निकालें। इसे 4 से 8 बार करें।
4. स्पाईरोमीटर - स्पाइरोमीटर के माउथपीस से साँस लें और फिर उसी में छोड़ें। यह एक्सरसाइज़ घंटे में 10 वार करें।
5. प्रतिरोध के साथ सीना को फुलाना और साँस छोड़ना: एक तौलिया को सीने के उपर कसकर बाँधना है और साँस लेना है फिर साँस छोड़ते समय तौलिया को ढीला कर देना है। इसे सीना, पेट और सीना- पेट दोनों के बीच बांधकर 5-5 बार साम सुबह करना है।
6. ऐरोबिक एक्सरसाइज़, टहलना, सीढ़ियाँ चढ़ना इत्यादि: भी बाद के समय में फेफड़ों को मज़बूत बनाने तथा इन्ड्युरेन्स बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐहतियात:
निम्नलिखित परिस्थिति में ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ नहीं करते हैं - बुखार, आराम करते समय दम घुटना, सीने में दर्द, अत्यधिक थकावट, चक्कर आना
Corona Awareness Program (April-May 2020)
कोरोना के प्रसार को कैसे रोका जाए, इसके बारे में ग्रामीण आबादी को पैम्फलेट का वितरण और शिक्षा, सामाजिक दूरी का महत्व, हाथ की स्वच्छता, श्वसन स्वच्छता और मास्क का उपयोग। इस जानलेवा वायरस से लड़ने के लिए इम्युनिटी कैसे बढ़ाई जाए, इस पर भी चर्चा की गई।